था बहती सदफ में बंद यकता गौहर : ऐसे आलम में किसको तकता गौहर ! दिल अपना जो देख सकता ठहरा है कहाँ - दरिया का सुकून देख सकता गौहर !
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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