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कविता

रुबाई

शमशेर बहादुर सिंह


था बहती सदफ में बंद यकता गौहर :
ऐसे आलम में किसको तकता गौहर !
           दिल अपना जो देख सकता ठहरा है कहाँ -
दरिया का सुकून देख सकता गौहर !

 


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हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ



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